भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वेद का ज्ञान होने लगा / उत्कर्ष अग्निहोत्री
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 27 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्कर्ष अग्निहोत्री |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वेद का ज्ञान होने लगा,
दर्द मुस्कान होने लगा।
अवतरित जब भी कविता हुई,
इक अनुश्ठान होने लगा।
दुःख जब भी किसी का जिया,
गीत वरदान होने लगा।
दृश्टि थी वो कि संस्पर्शमणि,
रंक धनवान होने लगा।
जिसने पूँजी लुटाई नहीं,
उसका नुकसान होने लगा।
गाँव में मेरा गैरिकवसन,
मेरी पहचान होने लगा।