भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब हुआ सच्चाई का इज़हार वो / उत्कर्ष अग्निहोत्री

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 27 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्कर्ष अग्निहोत्री |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब हुआ सच्चाई का इज़हार वो,
हादसों का बन गया अख़बार वो।

कोई हंगामा खड़ा होगा जहाँ,
कह रहा दुश्यन्त के अशआर वो।


छत का जिसपे सबसे ज़्यादा वज़्न था,
गिर गई है आज इक दीवार वो।

फिर लगेगी द्रौपदी ही दाँव पे,
लग गया है आज फिर दरबार वो।

दूर से दीखा था जो प्रवचन भजन,
पास आकर के दिखा बाज़ार वो।

भागवत अनुराग की कैसे पढ़े,
सुन रहा है वक्त का चीत्कार वो।