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तेरह / रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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तार किसने झन झनाया
मधुर नबल सितार के

बैठ कर गाने लगा क्यों मर्सिया अंजान वह
दर्द को उकसा रहा जो गा रहा है गान वह
सो गई है हाय! रो-रो कर पुन: जग जायगी तो
वेदना फिर तरल होकर तैरने लग जायगी तो

गज़ब होगा, गा रहा है
गीत में भर राग कुंठित प्यार के

अरे! बे पीर! तुम हंट का बाजा, तुम कौन हो
पीर जानो तो! पराई भी, कहो क्यों मौन हो
विहँस कर बोली की तेरे पास मैं रहती सदा
हमसे जन्मी है तुम्हारी जिन्दगी की हर अदा

गीत गाती थी कभी मैं जीत के
आज गाऊँगी तुम्हारी हार के