भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मनौती गीत / 2 / भील
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> श्री आंकार जी- ऊ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
श्री आंकार जी-
ऊँचो माळो डगमाळ टोंगलया बूड़न्ती जवार।।
काचा सूत की ऊँकार देव की गोफण बणाई...।।
हरमी-धरमी का होर्या-चिरल्या उड़ी जाजो,
ने पापी को खाजो सगळो खेत।।
-ओंकारेश्वरजी का महल ऊँचा है और घुअने डूब जायें, उतनी बड़ी ज्वार है।
कच्चे सूत की आंकारजी की गोफन बनाई। धर्मात्मा लोगों के खेतों के तोते उड़
जाना और पापी का सारा खेत चुग जाना।