भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली का त्यौहार / निशान्त जैन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:12, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त जैन |अनुवादक= |संग्रह=शाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिलता-खिलता-मिलता-जुलता,
आया होली का त्यौहार।
 
नाचे तन-मन, नाचे जीवन
नाचे आँगन, नाचे उपवन,
रंग-बिरंगी ओढ़ चदरिया
धरती लाई नई बहार।
 
टेसू महके, चहके पंछी
धुन में अपनी हंस-हंसिनी,
चोंच मिलाकर करें ठिठोली
करें सवेरे का सत्कार।
 
अंबर चला बाँध के सेहरा
लिये संग तारों का पहरा,
लगता मानो धरा-वधू की
डोली लेने आए कहार!
 
शीत बीत दिन हुए सुहाने
कुनमुनी धूप लगी मस्ताने,
हँसी-खुशी की, खेल-मेल की
राग-रंग की लगी है धार।
 
ऊँच-नीच क्या, बैर-खार क्या
छोट-बड़न क्या, जात-पाँत क्या,
भेद मिटा गोरे-काले का
दसों दिशा में उमड़ा प्यार।
 
झगड़े-झंझट और झमेले
छोड़, भुला दो बैर कसैले,
फागुन की मदमस्त बयारें
आई हैं करने मनुहार।