Last modified on 1 अक्टूबर 2018, at 01:42

राजा रानी किसी का पानी / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 1 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमाशंकर यादव 'विद्रोही' |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राजा रानी किसी का पानी नहीं भरते हैं हम
सींच कर बागों को अपने अब हरा करते हैं हम।

शर्म से सिकुड़ी हुई इस देह को हैं तानते
दोस्तो, अपने झुके कन्धे खड़ा करते हैं हम।

ऐसा करने में है जलता ख़ून, तुम मत खेल जानो
मोम जैसे दिल को पत्थर-सा कड़ा करते हैं हम।

मान जाएँ हार अपने ऐसी तो आदत नहीं
बाद मरने के भी काफ़िर मौत से लड़ते हैं हम।

आग भड़काने के पीछे अपना ही घर फूँक डालें
सोचिएगा मत कि ख़ाली शायरी करते हैं हम।