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गुलाब हम कन्ने रोपूँ? / सतीश मिश्रा

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हमर चारो दने हे इंगोर-
गुलाब हम कन्ने रोपूँ?

उतरल हे धरती पर चिनगी के डोली,
अगजा तो जिन्दा हे, मर गेल होली,
अमवाँ के डउँघ बइठ गिधवन के टोली
झोरित हे मोजर टिकोर-
गुलाब हम कन्ने रोपूँ?

चूल्हा के धुआँ ला सिसके बँडे़री,
कचबच गरबइया ला कुँहके मुँडे़री,
अँगना में टँगना पर चनकऽ हे रेंड़ी,
उधिआएल लँहगा-पटोर-
गुलाब हम कन्ने रोपूँ?

जाड़ा के पोर-पोर सीत निअन फोका,
बदरी के बाम उगल बन के पनसोखा,
अगिआएल जेठ दे हे मिरगा के धोखा,
दगिआएल उतरऽ हे भोर-
गुलाब हम कन्ने रोपूँ?