भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज गाने को जी चाहता है / मृदुला झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुनगुनाने को जी चाहता है।

तुम मनाना मुझे आज फिर से,
रूठ जाने को जी चाहता है।

भर नज़र तुमको देखा नहीं था,
पास आने को जी चाहता है।

बेवफ़ा है वो लेकिन उसी से,
दिल लगाने को जी चाहता है।

अब्र का इक नजारा ही काफी
माँ नहाने को जी चाहता है।