भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कलम बोलऽ हई / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:40, 9 जून 2019 का अवतरण ('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
{KKGlobal}}
मन जब दोलऽ हइ
सत पथ पर राही के
कलम बोलऽ हइ
अप्पन सिपाही के
सूतल सिपाही के
कलम जब जगावऽ हइ
मातल हिरदा में
टीस जब सुलगावऽ हइ
गीत लिखा हे धधकल युग हाही के
रह-रह मड़रा हइ कइसन करिया बादर
हइ अउकात केकरा
तोर करइ निरादर
सच्चाई आव दे
देखलूं हे तानाशाही के
मीठ जहर फइलइले
बिखधर के पोवा हे
नीचे में स्वारथ
ऊपर आन्ही बिंछोवा हे
चीन्ह ला मिठ मोहनी
असल जरलाही के
कलम साधक के
जब-जब चेतऽ हइ
दिव्य ज्ञान किरिन अन्हार के मेटऽ हइ
समय चूमऽ हइ
अइसन परछाही के।