भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंग-अंग पर अनंग के राज / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 9 जून 2019 का अवतरण ('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{KKGlobal}}

हउले-हउले हावा गुनगुना हइ फाग राग रे
सुख के सौगात लेले अइलइ रितुराज रे

पंचम सुर में तितली गावे हरियर चुह-चुह बाग में
मदमातल भौरन बइठल हे फूलल फूल पराग में
उतरल बगिया में बहुरंगी इंद्रधनुष साज रे

सूआपंखी चुनरी पेन्हली धरती बनल बिहउती
आम महुइया लथरल-लथरल अनमन जस परसउती
भोर किरिनियाँ हुलसल हुलकत अँखिया भरल बिहाग रे

लदबुद रहरी खंधा नाचे तीसी आउ मसुरिया
बूंट केरइया गदरइलइ गन लटकल लाम छिमरिया
रसे-रसे रस के फुहार बरस रहल हे आज रे

पीऊ-पीऊ पपिहा के रसगर नीक लगऽ हे बोलिया
परदेसी साजन के जइसे लगइ नीक ठिठोलिया
बेसुध तन के अंग-अंग पर जस अनंग के राज रे