भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साल भर पर ऋतुराज आवे / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:58, 9 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फाग गावऽ हइ
फागुन महीना
एकर हावा के सरगम नगीना

राम परदीप
पपीहा सुनावे
भोर में भैरवी
कोयलिया गावे
बगिया बजवऽ हइ
मिल्लत के बीना

ताल दीपचंदी तन मन झुलावे
धमार पंचम सुर में मिलावे
गंध बांटे पवन में पुदीना

चाँद खेलऽ हइ
चकवा-चकइया
सुरूज सोना के बांटे रुपइया
बड़ दुश्वार एकसर हे जीना

रंग पोरऽ हइ कलियन पर भौंरा
अबीर उड़वऽ हइ कामदेव के छौंरा
सुधि में पागल बिरहिन रात दीना

साल भर पर रितुराज आवे
प्यार से सबके मन गुदगुदावे
रउदा ढरकावऽ
लगलइ पसीना।