भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं हैरान हूँ! / मुकेश निर्विकार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 20 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश निर्विकार |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न जाने कैसे बहाता होगा
अपने अंतर से
जड़ों से पत्तियों तक
पोषण की संवेदांधरा
काठनुमा पेड़ का
कुचालक तना?

बदरंग तने और शाख के सिरों से
न जाने कैसे खिल उठती हैं
अमलतास की पीताभ
और गुलमौहर की रक्ताभ?

आखिर, यह बेरंग मिट्टी भी
न जाने कैसे उगा देती है
अपने अंदर से
पादपों की हरीतिमा और
पुष्पों के चटख रंग?

मैं कुदरत की अजब जादूगरी पर
बेहद हैरान हूँ!
और हैरान हूँ तुम पर भी की आखिर,
इन सबको देखकर तुम्हें तनिक भी
हैरानी क्यों नहीं होती
हे मित्र?