भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया दिन / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 14 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सूरज एक नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर-उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरनों को छितराए
क़लम, दराँती, ब्रश, हथौड़ा
जगह-जगह फैलाए
शाम!
थकी-हारी माँ जैसी
एक दिया जिलाए
धीमे-धीमे
सारी बिखरी चीज़ें चुनती जाए