भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब हम तुम मिले-2 / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:03, 5 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोपाल }} जब ...)
जब हम-तुम मिले
तो बातें बहुत थीं-- जो हमने नहीं कीं-- न करेंगे
काम भी
एक दूसरे को एक दूसरे से
कई थे-- जो हमेशा ही रहते हैं--
और जो हमेशा ही नहीं किए जाते।
कामों और बातों के परे हम
एक माध्यम में ढलकर रह गए थे--
कि हमारे ज़रिए एक ख़ामोश संगीत
बजने लगा था-- और हम देखते न देखते
आकाश के खुलेपन के माता-पिता थे
उसके बाद
हमारी गोदी में
खेलता बच्चा ही सहारा था-- हमारे लिए
एक-दूसरे के पास पहुँचने
- और एक-दूसरे को पाने का।