भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साल की आख़िरी रात / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 7 सितम्बर 2008 का अवतरण
एक छलांग
- लगाई है
- उजाले ने
अंधेरे के पार
- पाँव
- हवा में--
और
- मैं
- अपनी डायरी पर
- झुका हुआ
- अपनी डायरी पर
उसके
- धरती छूने का
- इन्तज़ार
- करता
- इन्तज़ार
००
रात के बारह बजने में
अभी
काफ़ी देर है।
(रचनाकाल : 31.12.1971)