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बेल्ला ले रही दूध का / खड़ी बोली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अलगाव का दर्द

-बेल्ला ले रही दूध का

मुट्ठी मैं ले रही बूरा

बैट्ठे होकै पीलो जी राजा
सगी नणदी के बीरा ।
-बेला रख दो दूध का
मुट्ठी का रख दो बूरा
सच्चमसच बताओ मेरी गोरी
क्यों रोई थी रात मैं ?…
-सच्चमसच बताऊँ मेरे राजा
छोड़ चले परदेस नैं…
-सुसरा धोरै रहियो ओ गोरी
सुसरा सूबेदार सै
-सुसरा धोरै कोन्नै रहती
सासू का घरबार सै…
-जेट्ठा धोरै रहियो ओ गोरी
जेट्ठा थाणेदार सै …
- जेट्ठा धोरै कोन्नै रहती
जेठाणी लड़ै दिन –रात सै…
-देवरा धोरै रहियो ओ गोरी
देवरा थारा प्यार सै…

-देवरा धोरै कोन्नै रहती

देवरा का क्या अतबार सै …
-पीहर मैं चली जइयो ओ गोरी
पीहर थारा गाम सै
-पीहर मैं ना जाऊँगी जी राजा जी
भाई-भौजियों का राज सै …
-कुएँ मैं गिर जइयो ओ गोरी
कुआँ थारे बार सै
-कुएँ मैं ना डूबूँ जी राजा जी
कुएँ की म्हारै आण सै…
-म्हारी गेलौं चलियो वै गोरी
तू मेरी प्यारी नार सै
-थारी गेलौं जाऊँगी राजा जी
तुम मेरे भरतार सै …