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हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी / जहीर कुरैशी

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हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी
हमसे पहले, हमारी नज़र जाएगी

फूल गमले की हद में खिलेंगे मगर
हर तरफ़ गंध उनकी बिखर जाएगी

रूप को क्या पता था कि उस भूल से
जिंदगी यूँ विवादों से भर जाएगी

जिस जगह तक समाचार जाते नहीं
उस जगह तक हमारी खबर जाएगी!

झील की शांति में गिर पड़ी कंकरी
दूर तक, द्वंद्व बन कर लहर जाएगी

क्रोध करने से वो काम होते नहीं
एक मुस्कान जो काम कर जाएगी

जगमगाएगी दीपावली की तरह
जो अमावस उजाले को ‘वर’ जाएगी.