भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धीर धरने की बात करते हैं / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 21 सितम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धीर धरने की बात करते हैं
वो ही डरने की बात करते हैं

पंछियों का सवाल उठते ही
‘पर’ कतरने की बात करते हो

प्यार से बात भी नहीं करते
प्यार करने की बात करते हैं

तेज़— रफ़्तार लोग जीवन में
कब ठहरने की बात करते हैं

दोस्त देते नहीं दिलासा भी
डूब मरने की बात करते हैं

जो बिगड़ने के छोर तक पहुँचे
वे सुधरने की बात करते हैं

जब भी उल्लास की चली चर्चा
लोग ‘झरने’ की बात करते हैं.