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बनकर के गाज गिरती है दुआ-ए-हुकूमत / फूलचन्द गुप्ता

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बनके गाज गिरती है दुआ ए हुकूमत
जलती है, राख करती है हवा ए हुकूमत

कहने को तो हक़ीम लुकमान अली है
सबको तबाह करती है दवा-ए-हुकूमत

लगती है यह अज़ान ओ मन्दिर के नाद-सी
फ़ित्ना तमाम करती है सदा ए हुकूमत

अफ़सोस ! उफ़ ये सहरा, बागात, सब्ज़ाखेत
हर सब्ज़ा ख़ाक करती है फज़ा ए हुकूमत

बेइल्म माँझी और यह कमज़ोर सफ़ीना
अब एक लहर और, बस, कज़ा ए हुकूमत

अब सावधान ! सावधान ! सावधान ! बस !
हर रोग, हर बला है यह वबा ए हुकूमत