भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोटी-छोटी ख़्वाहिश / रेखा राजवंशी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 23 जुलाई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
महकी-महकी बारिश हो, तू हो, थोड़ी तन्हाई हो
छोटी-छोटी ख़्वाहिश हो, ख़्वाबों ने ली अंगड़ाई हो
सूखे-सूखे से फूलों की ख़ुशबू में मन डूबा हो
क़तरा-क़तरा यादें हों, पर दरिया की गहराई हो
रेगिस्तानी आँखों में कुछ भीगे-भीगे लम्हें हों
आवारा मन की गलियों में बस तेरी तन्हाईहो
लम्बा रस्ता, मुश्किल मंज़िल, धुंधली-धुंधली राहें हों
ऐसा पागलपन हो, मैं हूँ, पर तेरी परछाई हो
काला बादल इस धरती पर , बरसे तो इतना बरसे
तू ही तू हो चारो सू और, यादों की शहनाई हो