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ग़ीबत (चुगली) / शेखर सिंह मंगलम
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मेरी हँसी-मज़ाक की हरेक बात में
संजीदगी गहराई चली जाती है।
ये ग़ीबत की दीवानी दुनिया
अच्छे को भी ग़लत दुहराई चली जाती है।
मैंने ढिकाने से कहा-
फलनवा मर गया वो थोड़ा अच्छा तो
थोड़ा बुरा इंसान था;
उस दिन वो स्वर्गीय यमराज के यहाँ से
मुझे मेरे ख़्वाबों में ढेला मारने लगे,
मैं तब जाना कि
ग़ीबत कहीं भी सनसनाई चली जाती है।