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सूरज ने हाथों से खींचा / रामकुमार कृषक
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सूरज ने हाथों से खींचा
जिगद गया दूबिया ग़लीचा !
गरमाया आसमान
काँपने लगा
धरती की स्वेद-गन्ध
भाँपने लगा,
ऊँचा भी और हुआ नीचा !
धुँधआती आँख / आँख
टोहती रही
आस बँधी प्यास / बाट
जोहती रही,
उग आया रेत का बगीचा !
29 जून 1974