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एक आदिम गन्ध / रामकुमार कृषक
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एक आदिम गन्ध
एक आदिम गन्ध
आदिम छन्द का निर्वाह
आदमीयत से परे कोई नहीं परवाह !
लीक बन्धन बुजुर्गी
इस बार अस्वीकार
सभ्यता के घुप अन्धेरों में भटकती / टूटती
हर रोशनी स्वीकार,
पाँव मैले ही करेंगे
अब उजाली राह !
शब्द / संज्ञा / अर्थ-लय
सब वर्ण के मुँहताज
काव्य का यह तख़्ते-ताउस / और इस पर
ताजपोशी के लिए बेताज,
अब कहाँ अभिषिक्त होंगे
चन्द थैलीशाह !
27-9-1976