भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमने गर आसमाँ उठाया है / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 12 सितम्बर 2023 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमने गर आसमाँ उठाया है
जगहें सबके लिए बनाया है।

सूई ने कब कहाँ सिलाई की
धागे को रास्ता दिखाया है।

कोई तालाब बन गया होगासूई
कोठी ऊँची अगर उठाया है।
 
आँखें रखने का है गिला हमको
अंधों ने आइना दिखाया है।

बेसुध हो लोग सो गये जब-जब
हमने आवाज़ दे जगाया है।