भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चौक के ऊपर वाला कमरा / स्तेफान स्पेन्डर
Kavita Kosh से
लगता था अनन्त प्रकाश इस खिड़की का
रहते थे जब तुम यहाँ, मेरे लिए
छिपती थी पेड़ों के ऊपर वह पत्तों के झुरमुट से
मेरे भरोसे की तरह
अस्त हो गया है प्रकाश वह और हो चुके हो तुम भी कब के
ओझल एक खड्ग के उजले प्रायद्वीपों में
चिथड़े-चिथड़े हो चुकी है शान्ति समूचे यूरोप में
जो बहती थी हमारे आर-पार कभी
चढ़ता हूँ अकेला अब मैं सीढ़ियाँ इस ऊँचे कमरे की
अंधेरे चौक के ऊपर
जहाँ पत्थर और जड़ों के बीच है कोई अन्य
अक्षत प्रेमीजन
अंग्रेज़ी से अनुवाद : रमेशचंद्र शाह