Last modified on 15 फ़रवरी 2009, at 06:42

दुख को सुमुख बनाओ, गाओ / जानकीवल्लभ शास्त्री

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:42, 15 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री }} <poem> दुख को सुमुख बनाओ, गा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


दुख को सुमुख बनाओ, गाओ !
काली घटा छंटेगी कैसे ?
रिमझिम-रिमझिम स्वर बरसाओ !

कौन सुने करुणा की वाणी ?
दीन दृगों के आँसू पानी !
पर अगीत संगीत अभी भी, -
इसका लयमय भेद बताओ !

असह सहो दृढ़ प्राण बनाओ,
अश्रुकणों को गान बनाओ,
जब सुख छिटके चन्द्रकिरण बन
सजल नयन झुक, चुप हो जाओ !
('उत्पल दल')