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हमारे चाहने वाले बहुत हैं / गोविन्द गुलशन
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हमारे चाहने वाले बहुत हैं
मगर दिल देखिए छाले बहुत हैं
नज़र ठोकर पे ठोकर खा रही है
उजाले हैं मगर काले बहुत हैं
भरोसा इसलिए तुम पर नहीं है
तुम्हारे ख़्वाब हरियाले बहुत हैं
अजी ये ख़ामशी टूटे तो कैसे
ज़ुबानों पर यहाँ ताले बहुत हैं
तमाशा मत बनाओ ज़िन्दगी को
तमाशा देखने वाले बहुत हैं
ये सब अमृत-कलश तुमको मुबारक
हमें तो ज़हर के प्याले बहुत हैं
उलझ कर रह गया हूँ मैं तो 'गुलशन'
तुम्हारे लफ़्ज़ घुँघराले बहुत हैं