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यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह / प्रभाकर माचवे

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यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह है उसी एक दुर्दान्त शक्ति की-
हमें न कोई पनाह अथवा शरण चाहिए, अन्ध-भक्ति की !
यहाँ सरल अन्तर दो परस्परातुर, और चाहिए भी क्या ?
हमें न किंचिन्मात्र ज़रूरत किसी तर्क की, किसी युक्ति की !