भूमिका (कला-कविता) / जी० शंकर कुरुप
कौतुक से सजीव कल्पना विश्व तथा मनुष्य जीवन को अपनी ओर खींचने तथा अपने बाहुपाश मे करने के लिये हाथ बढाती रहती है । इसलिए उस के हाथ बलिष्ठ होते हैं और उस की पहुंच दूर तक होती है । मन मे बिजली जैसी उठने वाली प्रक्रिया जब मनुष्य हृदय मे और विश्व हृदय मे भी अपनी प्रतिध्वनि सुनने के लिए मचलने लगती है तव हमे सर्वब्यापी एकता की अनुभूति होने लगती है ।कल्पना तथा मानसिक प्रक्रिया का यह कार्य जितना शक्तिशाली होता है उतना ही कलाकार का महत्त्व भो बढ़ता है । कवि हृदय एवं प्रकृति के बीच मधुर कल्पना तथा आर्द्र भाव युक्त संयोग से उत्पन्न होनेवाली अनुभूति का घनीभूत रूप ही कथावस्तु है । कल्पना कथावस्तु का प्राण है तो मानसिक प्रक्रिया है उसकी शिराओ मे दोड़्नेवाला जीव रक्त ! कल्पनासुरभित तथा भाव निर्मित इन कथावस्तुओं में प्रकृति तथा मानव आत्मा की छाप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं । यह छाप ही कलाकार का ब्यक्तित्व है, कथावस्तुओं का प्रकाश ही कला है । अपने कलात्मक जीवन की अनुभूतियों से कविता के संबंध में यही कुछ मैं समझ पाया हूँ । .......