भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा-2 / केशव शरण
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 21 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव शरण |संग्रह=जिधर खुला व्योम होता है / केशव श...)
यह दृष्टियों के आर-पार बह रही है
इसमें मज़े लूट रहे हैं रोयें
इसमें गान के स्वर मचल रहे हैं
इसमें उड़ रहा है फूलों का पराग
इसमें गुदगुदा उठे हैं प्राण