भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिंदगी को सजा नही पाया
बोझ इसका उठा नही पाया

खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नही पाया

प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नही पाया

जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नही पाया

वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नही पाया

आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नही पाया

नाम जगदीश है कहा उसने
और कुछ भी बता नही पाया