घर-आँगन (रुबाइयाँ)
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रचनाकार | जाँ निसार अख़्तर |
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प्रकाशक | |
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भाषा | हिन्दी |
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विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- वो आयेंगे चादर तो बिछा दूँ कोरी / जाँ निसार अख़्तर
- आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है / जाँ निसार अख़्तर
- दुनिया की उन्हें लाज न गैरत है सखी / जाँ निसार अख़्तर
- मन था भी तो लगता था पराया है सखी / जाँ निसार अख़्तर
- नाराज़ अगर हो तो बिगड़ लो मुझ पर / जाँ निसार अख़्तर
- वो शाम को घर लौट के आएँगे तो फिर / जाँ निसार अख़्तर
- डाली की तरह चाल लचक उठती है / जाँ निसार अख़्तर
- चाल और भी दिल-नशीन हो जाती है / जाँ निसार अख़्तर
- तू देश के महके हुए आँचल में पली / जाँ निसार अख़्तर
- सीने पे पड़ा हुआ ये दोहरा आँचल / जाँ निसार अख़्तर