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प्रेमकविता / शलभ श्रीराम सिंह

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जिसने दिया
लिया भी उसी ने।
काहे का दुःख
अगर ले-ले कोई
अपनी दी हुई चीज़ :
कहाँ थी उम्र अपनी?
कहाँ था सुख?
दुःख तक अपना कहाँ था भला?
ज्ञान कहाँ था अपना?
कहाँ थी हँसी?
रुदन कहाँ था अपना?
जिसका था ले गया वही।


रचनाकाल : 1993 विदिशा