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मिट्टी पर साथ-साथ / अमृता भारती
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मिट्टी पर साथ-साथ
रचनाकार | अमृता भारती |
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प्रकाशक | संभावना प्रकाशन, हापुड़-201021 |
वर्ष | 1976 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | लम्बी-कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- इस कविता के बारे में / अमृता भारती
- मैंने पत्थरों में फूल चेहरे देखे / अमृता भारती
- उसने अपना साँचा तोड़ दिया है / अमृता भारती
- सब अपने घरों को खुला छॊड़ दो / अमृता भारती
- अपने सब गुनाह उसके नाम कर दो / अमृता भारती
- उसके पास अजूबा भट्टियाँ हैं / अमृता भारती
- लोग उसे सोना-चाँदी देते हैं / अमृता भारती
- ऊँचे क़द वाले लोगों के लिए / अमृता भारती
- उसने पर्वतों को पानी कर दिया है / अमृता भारती
- उसके नाम से पृथिवी झुकने लगी है / अमृता भारती
- वह मेरा अन्तिम दिया बुझाकर / अमृता भारती
- मैं चिकने भूमिखण्ड की तरह / अमृता भारती
- मैंने सारे जगत की स्याही घोंट ली है / अमृता भारती
- मैं उसके पास उसे रख रही हूँ / अमृता भारती
- मैं उसकी आँच में अपने को जलाती हूँ / अमृता भारती
- उसने मेरे स्थान नियत कर दिए हैं / अमृता भारती
- लोग काले लबादों में उसकी तरफ़ आते हैं / अमृता भारती
- उसने नेपथ्य में कई दृश्य रच लिए हैं / अमृता भारती
- वह मुझे बहुत से प्याले देता है / अमृता भारती
- मैं उसे सबके प्याले देती हूँ / अमृता भारती
- मैं उसके माथे से अंगारे चुनती हूँ / अमृता भारती
- मैंने उसके सिर की माला निकाल ली है / अमृता भारती
- वह मेरी मिट्टी छान रहा है / अमृता भारती
- मैं फिर एक खेल रचती हूँ / अमृता भारती
- वह दुनिया का नक़्शा बनाता है / अमृता भारती
- वह परदेस से लौटकर अता है / अमृता भारती
- मेरी परछाइयाँ उसके शरीर पर / अमृता भारती
- मैं उसके चेहरे से कीलों की तरह / अमृता भारती
- मैं उसका चेहरा तोड़ती हूँ / अमृता भारती
- अब उसकी हँसी मैदानों की तरफ़ / अमृता भारती
- उसकी आकाशगंगा के किनारे / अमृता भारती
- मैं अपनी घड़ी उसकी घड़ी से मिलाती हूँ / अमृता भारती
- मैं अपने भरे हुए घर में / अमृता भारती
- उसकी शान्ति और पहाड़ों के नृत्य के बीच / अमृता भारती
- मैं सबसे कहती हूँ- 'काल सुन्दर है... / अमृता भारती
- मेरे रक्त में अब वह गंध नहीं रही / अमृता भारती
- उसने मेरे कुटुम्बियों के मरने की तारीख़ें बताईं / अमृता भारती
- उसने कहा था- एक दिन मैं तुझे... / अमृता भारती
- वह मुझे कुछ लोगों से मिलने के लिए भेजता है / अमृता भारती
- मैं दुनिया के नक्शे के बाहर निकलती हूँ / अमृता भारती