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एक अजनबी के लिए ख़त / निकानोर पार्रा

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जब गुज़र जाएँगे साल,
साल जब गुज़र जाएँगे और
हवा बना चुकी होगी एक दरार
मेरे और तुम्हारे दिलों के बीच;
जब गुज़र जाएँगे साल और रह जाऊँगा मैं
सिर्फ़ एक आदमी जिसने मोहब्बत की,
एक नाचीज जो एक पल के लिए
तुम्हारे होठों का क़ैदी रहा,
बाग़ों में चलकर थक चुका एक बेचारा इंसान मैं,
पर कहाँ होगी तुम?
ओ, मेरे चुंबनों से रची-बसी मेरी गुड़िया!
तुम कहाँ होगी?