भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम परतच्छ मैं प्रमान अनुमाने नाम्हि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:09, 2 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> हम परतच्छ मैं …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम परतच्छ मैं प्रमान अनुमाने नाम्हि,
तुम भ्रम-भौंर मैं भलैं हीं बहिबौ करौ ।
कहै रतनाकर गुबिंद-ध्यान धारैं हम,
तुम मनमानौ ससा-सिंग गहिबौ करौ ॥
देखति सो मानति हैं सूधो न्याव जानति हैं,
ऊधो ! तुम देखि हूँ अदेख रहिबौ करौ ।
लखि ब्रज-भूप अलख अरूप ब्रह्म,
हम न कहैंगी तुम लाख कहिबौ करौ ॥44॥