भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रथम भुराई प्रेम-पाठनि पढ़ाइ उन / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 26 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…)
प्रथम भुराई प्रेम-पाठनि पढ़ाई उन
तन-मन कीन्हें बिरहागि के तपेला हैं ।
कहै रतनाकर त्यौं आप अब तापै आइ
सांसनि की सांसति के झारत झमेला हैं ॥
ऐसे-ऐसे सुभ उपदेश के दिवैयनि की
ऊधौ ब्रजदेश मैं अपेल रेल-रेला हैं ॥
वे तौ भए जोगी जाइ पाइ कूबरी कौ जोग
आप कहैं उनके गुरु हैं किधौं चेला हैं ॥70॥