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रीते परे सकल निषंग कुसुमायुध के / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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रीते परे सकल निषंग कुसुमायुध के
दूर दुरे कान्ह पै न तातै चालै चारौ है ।
कहै रतनाकर बिहाइ बर मानस कौं
लीन्यौ हे हुलास हंस बास दूरिवारौ है ॥
पाला परै आस पै न भावत बतास बारि
जात कुम्हिलात हियौ कमल हमारौ है ।
षट ऋतु ह्वै है कहूँ अनत दिगंतनि मैं
इत तौ हिमंत कौ निरंतर पसारौ है ॥91॥