भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 1 अप्रैल 2007 का अवतरण (फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँवर moved to फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर)
रचनाकार: भावना कुँवर
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम ।
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।