भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा बस्ता कितना भारी / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:20, 1 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मेरा बस…)
मेरा बस्ता कितना भारी ।
बोझ उठाना है लाचारी ।।
मेरा तो नन्हा सा मन है ।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है ।।
पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक ।
थक जाता है मेरा मस्तक ।।
रोज़-रोज़ विद्यालय जाना ।
बड़ा कठिन है भार उठाना ।।
कम्प्यूटर का युग अब आया ।
इसमें सारा ज्ञान समाया ।।
मोटी पोथी सभी हटा दो ।
बस्ते का अब भार घटा दो ।।
थोड़ी कॉपी, पेन चाहिए ।
हमको मन में चैन चाहिए ।।
कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें ।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये ।।
बन जाते है सारे काम ।
छोटा बस्ता हो आराम ।।