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आलोक का कहाँ डेरा है? / चंद्र कुमार जैन
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रचनाकार: चंद्र कुमार जैन
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आलोक से डरा-सहमा अंधेरा
आखिर कहाँ जाकर
करता बसेरा ?
जानता था
लीन हो जाएगा
एक क्षण में
इसलिए
आकर बस गया वह आदमी के मन में
अब आदमी के मन में अंधेरा है
वह सोचता है
आलोक का कहाँ डेरा है ?