भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैंता एक दिन तो आएगा / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 27 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा' |संग्रह= }}‎ [[Category:कुमा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैंता एक दिन तो आएगा
इतनी उदास मत हो
सर घुटने मे मत टेक जैंता
आएगा, वो दिन अवश्य आएगा एक दिन

जब यह काली रात ढलेगी
पौ फटेगी, चिडिया चहकेगी
वो दिन आएगा, ज़रूर आएगा

जब चौर नही फलेंगे
नही चलेगा जबरन किसी का ज़ोर
वो दिन आएगा, जरूर आएगा

जब छोटा- बड़ा नही रहेगा
तेरा-मेरा नही रहेगा
वो दिन आएगा

चाहे हम न ला सके
चाहे तुम न ला सको
मगर लाएगा, कोई न कोई तो लाएगा
वो दिन आएगा

उस दिन हम होंगे तो नही
पर हम होंगे ही उसी दिन
जैंता ! वो जो दिन आएगा एक दिन इस दुनिया मे
ज़रूर आएगा ।