भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सारे जलते प्रश्न खो गए / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:38, 12 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरजंग गर्ग |संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारे जलते प्रश्न खो गए, ठन्ड़ॆ-बुझे जवाबों में।
आने वाली क्रंती लिखेंगी किसका नाम किताबों में?

हर सफ़दपोशी में मिलती घनी साँवली वीरानी,
शक़्ले बिल्कुल साफ़ दीखती हँसती हुई नक़ाबों में।

मिट्टी के पुतलों में कितनी सोन्धी-सोन्धी ख़ुशबू है,
लेकिन ऐसी गंध कहाँ है, चान्दी-मढ़े ख़िताबों में।

रही नहीं यों एक रियासत, मगर सियासत बाकी है,
जोड़-तोड़ की होड़ लगी है जमकर नए नवाबों में।

मिलना एक ज़रूरत है तो आओ सचमुच मिल जाएँ,
चौराहे पर गले मिलेंगे, नहीं मिलेंगे ख़्वाबो में।