भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम अगर बेकरार हो जाते / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम अगर बेकरार हो जाते।
हम बहुत शर्मसार हो जाते।

तुम जो आते तो चन्द
 ही लम्हात,
इश्क़
 की यादगार हो जाते।

एक अपना तुम्हें बनाना था,
ग़ैर चाहे हज़ार हो जाते।

तुम जो मिलते इशारतन हमसे,
दोस्त
 भी बेशुमार हो जाते।

आसरा तुम अगर हमें देते,
हम तलातुम में पार हो जाते।