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घर फूँक / केदारनाथ अग्रवाल
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घर फूँक
तमाशा देखती है
आक्रोश की भीड़;--
हाल में अभी
कई-कई पार्टियों से बनी,
चुनाव के चक्कर में
सफल हुई।
नाचते-गाते
उड़ आए आँधी में,
राजमार्ग पर,
लोकतंत्र के बराती
दिल्ली की दुलहन
ब्याहने के लिए--
राजतंत्र पर हावी होने के लिए--
तरह-तरह के स्वरूप भरे।
रचनाकाल: २२-०३-१९७७