भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करोटन में आए हैं फूल / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 18 अक्टूबर 2010 का अवतरण ("करोटन में आए हैं फूल / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
करोटन में आए हैं फूल
जीवन हुआ अनुकूल;
करोटन
खुश-खुश खड़ा है
आँगन में।
निछावर में आए हैं शूल,
जीवन हुआ प्रतिकूल;
अनफूला
खड़ा है बबूल
निर्जन में।
मैं हूँ
करोटन आँगन का,
फूला खड़ा अनुकूल।
मैं हूँ
बबूल निर्जन का,
अनफूला खड़ा प्रतिकूल।
रचनाकाल: १२-०३-१९७९