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कजली / 8 / प्रेमघन
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॥अन्य॥
आये सावन, मदन जगावन, बिरह बढ़ावन ऐ आली॥
धावन लागीं लखो बरसावन, घेरि घटा घन काली।
तावन लागी तनै मनभावन, बिन चपला उँजियाली॥
गावन लागीं रिझावन निज, पियजिय नव जोबन वाली।
कारन कौन प्रेमघन अजहूँ, नहिं आए बनमाली॥18॥