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सुनु खल! मैं तोहि बहुत बुझायो |
एतो मान सठ! भयो मोहबस, जानतहू चाहत बिष खायौ ||
जगत-बिदित अति बीर बालि-बल जानत हौ, किधौं अब बिसरायो |
बिनु प्रयास सोउ हत्यो एक सर, सरनागतपर प्रेम देखायो ||
पावहुगे निज करम-जनित फल, भले ठौर हठि बैर बढ़ायो |
बानर-भालु चपेट लपेटनि मारत, तब ह्वैहै पछितायो ||
हौं ही दसन तोरिबे लायक, कहा करौं, जो न आयसु पायो |
अब रघुबीर-बान-बिदलित उर सोवहिगो रनभूमि सुहायो ||
अबिचल राज बिभीषनको सब, जेहि रघुनाथ-चरन चित लायो |
तुलसिदास यहि भाँति बचन कहि गरजत चल्यो बालि-नृप जायो ||