(16)
हनुमान्जीका भगवान् रामके पास पहुँचना
राग बसन्त
रघुपति देखो आयो हनूमन्त | लङ्केस-नगर खेल्यो बसन्त ||
श्रीराम-काजहित सुदिन सोधि | साथी प्रबोधि लाँघ्यो पयोधि ||
सिय-पाँय पूजि, आसिषा पाइ | फल अमिय सरिस खायो अघाइ ||
कानन दलि, होरी रचि बनाइ | हठि तेल-बसन बालधि बँधाइ ||
लिए ढोल चले सँग लोग लागि | बरजोर दई चहुँ ओर आगि ||
आखत आहुति किये जातुधान | लखि लपट भभरि भागे बिमान ||
नभतल कौतुक, लङ्का बिलाप | परिनाम पचहिं पातकी पाप ||
हनुमान-हाँक सुनि बरषि फूल | सुर बार बार बरनहिं लँगूर ||
भरि भुवन सकल कल्यान-धूम | पुर जारि बारिनिधि बोरि लूम ||
जानकी तोषि पोषेउ प्रताप | जय पवन-सुवन दलि दुअन-दाप ||
नाचहिं-कूदहिं कपि करि बिनोद | पीवत मधु मधुबन मगन मोद ||
यों कहत लषन गहे पाँय आइ | मनि सहित मुदित भेण्ट्यो उठाइ ||
लगे सजन सेन, भयो हिय हुलास | जय जय जस गावत तुलसिदास ||