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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 5

(35)

चले लेन लषन-हनुमान हैं |
मिले मुदित बूझि कुसल परसपर-सकुचत करि सनमान हैं ||

भयो रजायसु पाउँ धारिए, बोलत कृपानिधान हैं |
दूरितें दीनबन्धु देखे, जनु देत अभय-बरदान हैं ||

सील सहस हिमभानु, तेज सतकोटि भानुहूके भानु हैं |
भगतनिको हित कोटि मातु-पितु अरिन्हको कोटि कृसानु हैं ||

जनगुन रज गिरि गनि, सकुचत निज गुन गिरि रज परमानु हैं |
बाँह-पगारु, बोलको अबिचल बेद करत गुनगान हैं ||

चारु चाप-तूनीर तामरस-करनि सुधारत बान हैं |
चरचा चलति बिभीषनकी, सोइ सुनत सुचित दै कान हैं ||

हरषत सुर, बरषत प्रसून सुभ सगुन कहत कल्यान हैं |
तुलसी ते कृतकृत्य, जे सुमिरत समय सुहावनो ध्यान हैं ||